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Thursday, January 20, 2011

जीवन के चक्रव्यूह .....


खो गया हु , जीवन के  चक्रव्यूह  मे
मोह-माया के भवर जाल मे
जिन्दगी उलझ गयी है इन्ही उलझनों मे
अतीत के बारे मे सोच के खुश हो जाता हु
वर्तमान मे सोचता हु, कहा फ़स गया
भविष्य के बारे मे सोच के भयभीत हु
खुश है वो फूल, जो काँटों के साथ रहते है
हम तो फूल के साथ रह के भी खो गए
जीवन के इस चक्रव्यूह मे ....
हम से अच्छी तो वो कोयल है
जो हमेशा गीत गाती  रहती है
देखो उन, झरनों को, नदियों को,
जो करतल धवनी से चीत्कार कर रही है
एक हम है, एक आप है
सब खो गए है जीवन के इस चक्रव्यूह मे
मोह-माया के मायाजाल मे........

.........रवि तिवारी............


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