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Tuesday, January 18, 2011

ख़ुशी का आलम......

वो न आये थे, तो लगता था की
 पतझड़ का मौसम चल रहा है
जब वो आये तो मौसम ही बदल गया
खेतो में फसले  भी लहलहाने लगी
पर्वतो में गीत गूंजने लगे
वीणा के तार मचल उठे
सपने सारे  सच  लगने लगे
में  तो ऐसे झूमा की , झूम ही गया
ख़ुशी का ये आलम
मेरा दिल भी मुझ से जलने लगा
पलके भी झपकने से इनकार करने लगी
परीया भी गीत गुनगुनाने लगी
कोयल भी कूकने लगी
आसमान से फूल बरसने लगे
में भी ये महसूस करने लगा, उन्ही का होने लगा.

............रवि तिवारी........

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