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Monday, January 31, 2011

जज्बा.....


चला था अकेले ही, सोचा की अकेले ही चलते जाना है..ना तो किसी का इंतज़ार था और ना ही किसी से कोई भी उम्मीद थी, मै मग्न था अपनी धुन में, कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था कुछ और, मै इतना मग्न था की अपने आप को भी  नहीं देख रहा था ..अचानक एक दिन स्नान कर रहा था तो देखा की मेरे हाँथ पे काले निशान बन गए है , वो धुप में चल चल के काले हो गए थे मेरे हाथ , फिर भी अगले दिन से मै एक बार फिर अपने मंजिल की ओर चल दिया, धुन में मग्न था मै..कुछ लोगो ने बोला की ये पागल हो गया है ,कुछ नहीं कर सकता !
मैंने भी ठान राखी थी जब तक मेरी मंजिल मुझे नहीं मिल जाती मै भी चैन की साँस नहीं लूँगा, धीरे-धीरे एक साल बीत गए ,पता ही नहीं चला मुझे की कब  सुबह हुई और कब शाम हो गयी ,लेकिन थोरी सफलता मिल रही थी , मै बहुत उत्साहित था ,और अब दुगने जोश से चल रहा था मै,..सपने में नहीं सोचा था की मै ऐसा भी कर सकता हु एक अनजान शहर में भी अपनी पहचान बना सकता हु ...सफलता मिल रही थी ..जीने का मजा आने लगा..लोगो का प्यार और इज्ज़त मुझे मिलने लगा था....खुश इतना था की मै बता नहीं सकता आपको ...सच्ची  ख़ुशी तो इसमें ही  मिलती है  की जब आप शुन्य  से शुरुआत करते है और बहुत आगे तक निकल जाते है फिर देखिये ऐसा लगेगा की इन बाजुओ में भी दम है...एक बार कोशिश  कर के देखिये ..सब  कुछ आसान है..सिर्फ  करने  का जज्बा  होना  चाहिए  मन  में.....कोशिश कर के देखिये !!
..........रवि तिवारी.........

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