क्या वो दिन थे, क्या वो प्यार था
वादे किये थे , कसमे खाए थे
सात जन्मो का साथ देने का
खुद चल दिए ख़ुशी के दामन थाम के
और मुझे छोड़ दिया अश्को के सागर में
जी रही थी ख़ुशी ख़ुशी मै
आँखों में सुनहरे सपने सजोये
दिल ही दिल में ख्वाब सजोये
हाय रे निर्दयी ,तुझे दया भी ना आई
कुछ ना सोचा , कुछ ना समझा
जी रही थी तेरे सहारे
अब मै जीयू किसके सहारे
आँखों से अश्क रुकते नहीं
तेरी याद जाती नहीं
दिल को कितना समझाऊ
दिल नादान समझता नहीं
हाय रे बेदर्दी ,तुझे दर्द भी ना हुआ
अब जीयू मै किसके सहारे
तू खुश हो गया अपना घर बसा के
मुझे जिन्दा ही मार गया तू
मेरा घर जला के ..
मेरा घर जला के.
....रवि तिवारी .....
Awesum yar....
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