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Saturday, April 30, 2011


प्यार नहीं श्रींगार लिखने को जी चाहता है
भारत माँ की तकदीर बदलने को जी चाहता है
बहुत देख लिया बेईमानी
बहुत देख लिया गद्दारी
सब को सबक सिखाने को जी चाहता है
नेता हो या अभिनेता हो
पूरब का हो या पश्चिम का हो
जूतम-पैजार करने को जी चाहता है
देश की जनता तड़प रही है
भ्रष्टाचार और महंगाई में जल रही है
बहुत हो गया अब ये प्रशाशन
सबको बदल देने को जी चाहता है
नेता सारे चोर हो गए
जनता और गरीब हो गयी
चल चलो तुम सब मिल के सारे
दिल्ली का तख़्त हिलाने को जी चाहता है
दिल्ली का तख़्त हिलाने को जी चाहता है
............रवि तिवारी ...........

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