भीड़ तो बहुत है ,लेकिन मै तन्हा क्यों हु
पास तो सभी है ,लेकिन कोई अपना क्यों नहीं
वादे तो सभी कर लेते है
लेकिन कोई निभाता क्यों नहीं
सपने तो बहुत है
लेकिन सच होता क्यों नहीं
मंजिल की चाह में बढ़ रहा हु
मंजिल मिलती क्यों नहीं
अपनों के शहर में
अपनापन क्यों नहीं
bahut khub ravi jii.i am impressed
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