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Wednesday, August 24, 2011
दिल के गहरे जख्म
मै लफ्जो में कुछ बता नहीं सकता
दिल के गहरे जख्म दिखा नहीं सकता
राहे उल्फत में साथी तो बहुत मिले
गगन में तारे भी बहुत देखे
जिसे अपना बनाना चाहा
उसे हम कभी अपना बना नहीं सकते
वफ़ा का जबाब ने बेवफा बना दिया
फुल था अब पत्थर बना दिया
अपनों ने ही ठुकरा दिया
कैसे तुम्हे दिखाऊ दिखा नहीं सकता
मै लफ्जो में कुछ बता नहीं सकता
ख्वाब मेरे भी बहुत थे
जीवन के सफ़र में
आसमान तक जाने की
सभी उचाइयो को छुने की
लेकिन क्या करू,
खुद पंख लगा नहीं सकता
मै लफ्जो में कुछ बता नहीं सकता
दिल के गहरे जख्म दिखा नहीं सकता
..........रवि तिवारी ......
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Bohot hi sundar vyakhya us pareshaan dil ki jo rukawaton se ghira hua hai..
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